ट्रेन फक Xxx कहानी में मैं AC फर्स्ट क्लास केबिन में सफर कर रही थी. मेरे केबिन में 2 स्मार्ट लड़के आये तो मेरा मन उन दोनों को अपनी फुद्दी देने का हो गया.
मेरा नाम मिसेज निग़ार चौधरी है। मैं 32 साल की एक मदमस्त खूबसूरत और सेक्सी महिला हूँ।
मैं पढ़ी लिखी हूँ। मैंने इंग्लिश में पी जी कर रखा है और मैं इंग्लिश खूब फर्राटेदार बोलती हूँ।
मेरी इंग्लिश और मेरी खूबसूरती देख कर लोग मेरी तरफ आसानी से आकर्षित हो जाते हैं।
मैं फिर उन मर्दों को भाव देने लगती हूँ जो मुझे अच्छे लगते हैं।
फिर वे मेरे आगे पीछे घूमने लगते हैं।
मैं उन्हें पहले थोड़ा नखरे दिखाती हूँ, थोड़ा तड़पाती हूँ और थोड़ा तरसाती हूँ।
कुछ दिन बाद फिर मैं उन्हें लिफ्ट देने लगती हूँ, उनके साथ घूमने फिरने लगती हूँ, उनसे मुस्कराते हुए खुल कर बातें करने लगती हूँ, अश्लील और गन्दी गन्दी बातें भी करने लगती हूँ।
उसके बाद मैं एक दिन उनके लण्ड तक पहुँच जाती हूँ।
फिर क्या … लण्ड खुद ही बहनचोद मेरी चूत तक पहुँच जाता है और मैं चुदवाने लगती हूँ।
मुझे चुदवाने का मज़ा मिलने लगता है और फिर मैं अपनी जवानी का पूरा मज़ा लूटने लगती हूँ।
इस तरह मैं एक के बाद दूसरे से, दूसरे के बाद तीसरे से और तीसरे के बाद चौथे से चुदवाने लगती हूँ।
अब तक मैं कई लड़कों से चुदवा चुकी हूँ।
मुझे हर तरह के लण्ड से प्यार होने लगा है और मैं हमेशा नए नए लण्ड की तलाश में रहने लगी हूँ।
ज़ाहिर है कि मैं अपनी शादी के पहले खूब चुदी हुई थी; कई लड़कों से चुदी हुई थी और कई जगहों पर चुदी हुई थी।
कभी अपने घर में, कभी किसी और के घर में चुदती थी, कभी किसी होटल में, कभी कार में, यहाँ तक की एक बार मैं टॉयलेट में भी चुदी थी।
जितने लड़कों से चुदी थी, उनके लण्ड चूस चूस कर मज़ा लिया करती थी।
मुझे लण्ड चूसने का जबरदस्त चस्का लग गया था क्योंकि लण्ड चूसने से ही मेरी खूबसूरती में निखार आया था।
मेरे बूब्स बड़े बड़े हो गए थे.
शादी के बाद तो पराये मर्दों के लण्ड पकड़ने की और उनसे चुदवाने की चाहत तो बहनचोद और ज्यादा बढ़ गयी थी.
आजकल भी मैं जब किसी मन पसंद मर्द को देखती हूँ तो मेरी चूत अंदर ही अंदर फड़फड़ाने लगती है।
मैं एक बड़ी कंपनी में काम करती हूँ। मेरा टूरिंग का बड़ा काम है.
मीटिंग वगैरह में मैं अक्सर बाहर जाया करती हूँ कभी हवाई जहाज़ से और कभी ट्रेन से!
एक बार मैं दिल्ली से बैंगलोर ट्रेन से जा रही थी।
मेरी Train Fuck Xxx Kahani इसी सफ़र की है.
ए सी फर्स्ट कैलास में मेरी बुकिंग थी जिसमे चार बर्थ होती हैं। मेरी लोअर बर्थ थी।
मैं अपने बर्थ पर जाकर बैठ गयी।
बैठते ही मैंने अपना गुलाबी जालीदार बुर्का उतार दिया.
थोड़ी देर बाद दो लड़के मेरे कूपे में आये और अपना सामान वगैरह लगा कर बैठ गए।
एक की बुकिंग लोअर बर्थ पर थी और दूसरे की अपर बर्थ पर।
लेकिन वह भी नीचे ही बैठ गया।
मैं उनके सामने बैठी थी। मैं साड़ी और ब्रालेट में थी। मेरी बाहें खुली हुई थीं।
वे दोनों मुझे बड़े गौर से देख तो रहे थे लेकिन शायद बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
उनकी निगाहें मेरी बड़ी बड़ी चूचियों पर थीं जो जरूरत से ज्यादा खुली हुई थीं।
केवल निपल्स ही छुपे हुए थे, बाकी सब कुछ दिख रहा था।
वैसे मुझे अपना जिस्म दिखाने का भी शौक है।
बोलने का कोई विषय भी शायद उन्हें नहीं मिल रहा था।
मैं मन ही मन मुस्करा रही थी।
लड़के दोनों ही बड़े हैंडसम थे, गोरे चिट्टे थे और अच्छे कद काठी वाले थे।
सच कहूं तो मुझे दोनों एक ही नज़र में भा गए।
मैं उनके बारे में और उनके लण्ड के बारे में सोचने लगी।
मैंने ऐसे ही पूछा- नीलेश तुम कहाँ तक जा रहे हो?
वह यह सुनकर चौंक पड़ा और बोला- हम बैंगलोर तक जा रहे हैं मैडम!
मैंने फिर पूछा- और विशाल तुम?
उसने बताया- मैं भी बंगलोर जा रहा हूँ मैडम! हम दोनों गहरे दोस्त हैं और एक ही कंपनी में काम करते हैं इसलिए अधिकतर साथ साथ ही रहते हैं। लेकिन आपको हमारा नाम कैसे मालूम हुआ?
मैंने कहा- अरे यार, नाम तुम लोगों का लिस्ट में लिखा है न?
विशाल ने कहा- हां हां … आपने सच कहा। वैसे आप कहाँ तक जा रहीं हैं?
मैंने कहा- मैं आपका पूरा साथ दूँगी।
दोनों मुस्करा पड़े और समझ गए कि मैं भी बंगलोर जा रही हूँ।
इतने में टी टी आ गया।
उसने टिकट चेक किया और बोला- मैडम यहाँ एक बर्थ खाली है, अब और कोई आने वाला नहीं है। कहो तो मैं आपको दूसरे कूपे में शिफ्ट कर दूँ?
मैंने कहा- नहीं नहीं, कोई जरूरत नहीं है; मैं यहाँ सेफ हूँ। ये दोनों मेरे साथी हैं, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।
टी टी फिर गुड नाईट कह कर चला गया।
उसके बाद नीलेश बोला- वाह मैडम, आपने तो कमाल कर दिया। हम दोनों आपसे बिलकुल अपरिचित हैं। एक दूसरे से बिलकुल अनजान हैं। मैं तो आपका नाम भी नहीं जानता आपने बड़ी सफाई से हम दोनों को अपना साथी बना लिया।
मैंने कहा- तुम लोग मेरे ही जैसे दिखते हो तो मैंने तुम्हे अपना साथी बना लिया।
विशाल बोला- तो फिर आप मेरी दोस्त हो गईं।
मैंने कहा- मैं तुम्हारी दोस्त भी हूँ और शादीशुदा होने के नाते मैं तेरी भाभी ही हूँ। मुझे देवर भाभी का रिस्ता बड़ा अच्छा लगता है।
इस बात पर हम तीनों हंसने लगे।
उसके बाद हमारे तीनो के बीच खुल कर बातें होने लगीं और मैं अपनी चूचियाँ इधर उधर घुमाते हुए उनके लण्ड में आग लगाने लगी.
फिर अचानक नीलेश ने अपने बैग से एक व्हिस्की की बोतल निकाली और टेबल पर रख दी।
उसने फिर दो गिलास निकाले वो भी रख दिये।
वह मुझसे बोला- भाभी जी, क्या आप हमारा साथ देंगी?
मैंने कहा- अरे भोसड़ी वालो … मैं तेरी भाभी हूँ तो फिर क्यों नहीं साथ दूंगी? मैं तुम्हें अपने हाथ से पिलाऊंगी शराब!
फिर क्या … मैंने खुद आगे बढ़ कर तीन पैग व्हिस्की बनाई और उन दोनों को एक एक घूंट पिला कर मैंने भी सिप किया।
हम तीनों एक दूसरे को देख देख शराब का मज़ा लेने लगे।
मेरे बदन में तो पहले से ही आग लगी थी।
उनके साथ दारू पीने से मेरी जिस्म की गर्मी बढ़ती जा रही थी।
मैं उन्हें और ज्यादा रिझाना चाहती थी।
अचानक विशाल बोला- मैडम!
मैंने उसे बीच में ही टोंक कर कहा- फिर वही मैडम? मैडम की माँ का भोसड़ा? मैं तेरी मैडम नहीं हूँ यार? मैं तेरी भाभी हूँ। मुझे निग़ार भाभी कहो या फिर फुद्दीचोदी भाभी कहो।
मैंने जानबूझ कर गालियां दीं।
मुझे मालूम था कि औरतों के मुंह से मर्दों को गालियां अच्छी लगती हैं।
मैं उन दोनों को बेशर्म बनाना चाहती थी; उनके लण्ड में और आग लगाना चाहत्ती थी।
मेरा तीर सही निशाने पर लगा।
मेरी गालियां सुनकर उनके लण्ड साले अंदर ही अंदर कुलबुलाने लगे।
इधर मेरा पल्लू भी गिर गया; मेरी दोनों चूचियाँ दिखाईं पड़ गईं।
माहौल एकदम से गर्म हो गया।
मैंने पूछा- तुम लोग कितने गहरे दोस्त हो?
विशाल बोला- हम लोग एक दूसरे से कुछ भी नहीं छुपाते। सब खुल कर बता देते हैं।
मैंने कहा- अच्छा तो फिर लण्ड भी नहीं छुपाते होंगे? वो भी एक दूसरे को दिखा देते होंगे?
वो दोनों मेरी बात पर हंसने लगे फिर शरारत भरी नज़रों से बोले हां दिखा देते हैं।
मैंने कहा- अगर ऐसा है तो तुम बताओ नीलेश का लण्ड कैसा है? और नीलेश तुम बताओ कि विशाल का लण्ड कैसा है?
अब दोनों फंस गए।
कोई जवाब नहीं मिल रहा था।
नीलेश बोला- अरे भाभी जी, हम लोगों ने एक दूसरे का लण्ड तो नहीं देखा. पर हां … कॉलेज के दिनों में हम दोनों लड़कियां फंसा फंसा कर चोदते थे। जो लड़की ये चोदता था वही लड़की मैं भी चोदता था और जो लड़की मैं चोदता था वही लड़की इससे चुदवाता था। तभी हमने एक दूसरे का लण्ड देखा।
मैंने कहा- अच्छा तो आज मैं तेरा लण्ड पकड़ कर नीलेश को दिखाऊंगी और नीलेश का लण्ड पकड़ कर तुझे दिखाउंगी। ताकि तुम लोगों की दोस्ती और गहरी हो जाए।
ऐसा कह कर मैं उठी और दोनों की चुम्मी ली फिर दोनों के बीच में बैठ गयी।
मेरा दाहिना हाथ नीलेश की जांघ पर चला गया और बायां हाथ विशाल की जांघ पर!
मैं दोनों हाथ उनकी जांघों पर बड़े प्यार से रोमांटिक मूड में रगड़ने लगी और धीरे धीरे उनके लण्ड तक पहुँच गयी।
दारू का नशा हम सब पर चढ़ चुका था और मुझे अब लण्ड का नशा लेना था।
मैं दारू के नशे के साथ साथ लण्ड का नशा भी करती हूँ.
मेरी साड़ी तितर बितर हो गयी। मेरी दोनों चूचियाँ बाहर निकलने के लिए बेताब हो गईं।
मैंने दोनों के लण्ड पैंट के ऊपर से ही दबा दिये तो उन दोनों ने मेरी एक एक चूची दबा दी और मेरे एक एक गाल चूम लिया।
किसी मरद का हाथ जब चूचियों पर पड़ता है तो चूचियाँ खिल उठतीं हैं।
विशाल ने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया तो मैंने ब्रा उतार कर नीचे फेंक दी।
मेरे मम्मे देख कर दोनों मस्त हो गए बहन चोद … चाटने लगे मेरे बूब्स, सहलाने और मसलने लगे मेरे बूब्स!
उधर मैं दोनों के कपड़े उतारने लगी।
ऊपर के कपड़े उतारे, फिर पैंट भी दोनों की खोल दी।
फिर नेकर भी उतार कर फेंक दिया।
दोनों लण्ड साले मेरे आगे फनफनाकर खड़े हो गए।
लण्ड काफी बड़े थे और मोटे भी जबरदस्त थे।
देखने में बड़े हैंडसम थे और बिना झांट के थे।
मुझे तो चिकने लण्ड ही पसंद हैं।
दोनों लण्ड मैंने कई बार प्यार से चूमे और उन्हीं लण्ड में खो गयी।
मैंने मन में कहा कि बहुत दिनों के बाद आज मुझे दो दो लण्ड से चुदवाने का मौका मिलेगा।
मुझे पता ही नहीं चला कि ट्रेन चल रही है या रुकी हुई है। मैं तो लण्ड में खोई हुई थी।
वे दोनों मेरे नंगे जिस्म से खेलने लगे।
फिर मैं दोनों लण्ड बारी बारी से मुंह में डाल कर चूसने लगी।
विशाल मेरी फुद्दी चाटने लगा और नीलेश मेरी चूचियाँ चाटने और चूसने लगा, मेरी गांड पर हाथ फिराने लगा, मेरे चूतड़ों पर हौले हौले थप्पड़ मारने लगा।
निलेश मेरी मोटी मोटी जाँघों का मज़ा लेने लगा।
विशाल मेरी फुद्दी के साथ साथ मेरी गांड भी चाटने लगा।
मुझे लगा कहीं ये मादरचोद लण्ड मेरी गांड में न पेल दे?
फिर सोचा किअगर पेल भी देगा तो मैं पेलवा लूंगी।
मैं तो गांड मरवाने का भी मज़ा ले लेती हूँ।
तब तक नीलेश ने मेरी टांगें फैलाई और लण्ड उसी पर टिका दिया।
मैं समझ गयी अब ये पेलेगा लण्ड! मैं भी तैयार थी और मेरी चूत भी!
फिर उसने गच्च से लण्ड पूरा घुसाया तो मुझे मज़ा आया।
मैं तो खूब चुदी हुई थी तो दर्द तो हुआ नहीं.
फिर भी मैं बोली- उई माँ … मर गई मैं … फट गयी मेरी चूत! बड़ा मोटा है तेरा भोसड़ी का लण्ड नीलेश!
वे दोनों मादरचोद मेरी बातें सुनकर और ज्यादा उत्तेजित हो गए।
फिर क्या … वह निडर होकर घपाघप चोदने लगा मेरी चूत!
और मैं विशाल का लण्ड चूसने लगी।
मैं दो दो लण्ड का मज़ा एक साथ लेने लगी।
दोनों ग़ैर मर्दों के लण्ड मुझे मज़ा देने लगे।
मेरे मन में फिर आया कि मज़ा तो सच में पराये मर्दों से चुदवाने में ही आता है।
मैं रंडी की तरह अपनी गांड उछाल उछाल कर चुदवाने लगी।
वैसे भी हर औरत फुद्दीचोदी अंदर से रंडी ही होती है।
जितनी स्पीड से ट्रेन चल रही थी उतनी ही स्पीड से लण्ड भी मेरी चूत में आ जा रहा था।
मेरी मस्ती का जवाब नहीं था, मैं सातवें आसमान में थी।
मैंने सोचा नहीं था कि मुझे ट्रेन में दो दो लण्ड से चुदाने का मौका मिलेगा।
इतने में विशाल ने इशारा किया तो नीलेश ने लौड़ा मेरी चूत से निकाल लिया और विशाल ने अपना लौड़ा मेरी चूत में घुसेड़ दिया.
अब मुझे विशाल चोदने लगा और मैं नीलेश का लण्ड चूसने लगी।
विशाल का लण्ड भी मोटा था, वह भी एक अलग तरह का मज़ा देने लगा।
हर लण्ड का मज़ा अलग अलग होता है।
एक एक करके दोनों मुझे झमाझम चोदने लगे।
शादी के बाद आज पहली बार मैं दो दो लण्ड से चुदवा रही थी।
मेरी चूत के चीथड़े उड़ रहे थे।
चूत का हलवा बनाया जा रहा था।
मुझे पता नहीं बहन चोद कितनी गर्मी भरी थी मेरी चूत में? न चूत रुकने का नाम ले रही थी और न लण्ड!
इतना मस्त मज़ा बड़ी मुश्किल से मिलता है।
शराब का नशा भी चढ़ा ही था उससे ज्यादा लण्ड का नशा चढ़ गया था मेरे दिमाग में!
मैं खुद कभी कभी सोचती हूँ कि मैं मादरचोद इतनी चुदक्कड़ क्यों हो गई हूँ? मुझे ग़ैर मर्दों के लण्ड इतने ज्यादा क्यों पसंद आते हैं?
मेरी उत्तेजना बढ़ी तो मैं बोलने लगी- फाड़ डालो मेरी फुद्दी मादर चोदो? हाय रे … बड़ा मज़ा आ रहा है। तेरा लौड़ा नहीं हथौड़ा है बहनचोद! आह हो ऊँहां ओहो हीं ऊह और चोदो मुझे … अपनी बीवी समझ कर चोदो!
विशाल बोला- हां तू साली एकदम कुतिया है। तेरी माँ का भोसड़ा निग़ार … तेरा माल बहुत बढ़िया है. तू भोसड़ी की बहुत बड़ी रंडी है।
नीलेश बोला- आज रात भर तेरी चूत फाड़ूंगा मैं … तेरी गांड में ठोकूंगा लण्ड! तू निग़ार तू फुद्दीचोदी बड़ी हरामजादी है। लौड़ा पूरा घुसा दूंगा तेरे मुंह में! तेरी चूचियाँ भी चोदूंगा मैं!
फिर नीलेश ने चूचियों में लण्ड घुसेड़ दिया, बोला- मेरा मन कर रहा है कि मैं तेरी माँ चोद डालूं!
मैं भी मस्ती में बोली- अगर तुमने मुझे चोद कर संतुष्ट कर दिया तो मैं वादा करती हूँ कि मैं एक दिन तुम दोनों से अपने सामने अपनी माँ चुदवा लूंगी।
विशाल यह सुनकर और उत्तेजित हो गया।
उसने लण्ड उसके मुंह में पूरा का पूरा पेल दिया और चोदने लगा मेरा मुंह!
दोनों साले अदल बदल कर कभी मुंह चोदते, कभी चूत!
इस तरह आखिर कार मेरी चूत ने छोड़ दिया पानी।
मैं सच में संतुष्ट हो गयी; मेरी चूत ढीली हो गयी।
दोनों लण्ड भी झड़ने लगे।
फिर मैंने बड़े मजे से दोनों झड़ते हुए लण्ड चाटे।
दूसरी पारी मैं पहले नीलेश के लण्ड पर बैठी और फिर विशाल के लण्ड पर!
मैंने बारी बारी से दोनों लण्ड का मज़ा लिया।
अपनी गांड में भी ठुकवाया दोनों के लण्ड।
जब तक हम लोग बैंगलोर पहुँच नहीं गए तब तक ये लण्ड चूत और चूची का खेल चलता ही रहा।
मैंने ट्रेन में दो अनजाने लण्ड का मज़ा खूब लिया।
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