सरदार जी को खिलाया चूत का मेवा- 1

सेक्सी मालकिन की चुदाई का मौक़ा मैंने खुद ही दिया अपने बिजनेस के ट्रक ड्राईवर को! मैं मस्त चीज हूँ और सेक्स मेरी जान है. मेरे पति बाहर गए तो मैंने अपने ड्राईवर को अपने ऊपर चढ़ा लिया.

मेरे प्यारे दोस्तों को और बहनों को अंजलि भाभी का प्यार भरा नमस्कार!

मैं जामनगर, गुजरात की रहने वाली बत्तीस साल की कड़क भाभी हूं।
एकदम गोरी चिकनी, बिल्कुल गदराया हुआ बदन और 32-28-34 की साइज में कसते हुए कपड़ों में मैं एकदम पटाखा माल हूं।

मेरी शादी हो गई और मैं मेरे मायके से राजकोट से यहां जामनगर आ गई।
मेरे पति संजय कंस्ट्रक्शन का बिजनेस करते हैं।

हमारे घर में सास-ससुर और हम पति- पत्नी ही रहते हैं।

मेरे पति एकदम शांत स्वभाव के हैं, मुझे बहुत प्यार करते हैं और मेरी जबरदस्त ठुकाई भी!
मगर उन्हें इतना समय कहां कि मेरे जैसी सड़कछाप रण्डी की प्यास बुझायें।

महीने में दस रात ही वे मुझे शांत करते।
बाकी तो वे बाहर रहते या देर से आ जाते।

इसी वजह से मुझे बाहर मुंह मारने का टाइम मिल जाता और नए नए लौड़े चखने मिल जाते।

मुझे किसी भी तरह की कोई रोक टोक नहीं थी; ना सास-ससुर से ना ही पति से!
तो मैंने अपने चूदाई की यात्रा ऐसे ही जारी रखी जैसी मैं मायके में चली आ रही थी।
एकदम आजाद चुदाई की जिंदगी।

तो आज मैं आपको एक नई कहानी सुनाऊंगी, जो मेरी एक बहुत पसंदीदा चोदन कहानी है।

जैसा कि मैंने आपको बताया, मेरे पति संजय कंस्ट्रक्शन का बिजनेस करते हैं तो हमारा एक गोडाउन भी है जहां हम बिल्डिंग मैटेरियल स्टॉक करते हैं।
हमारा गोडाउन घर से नजदीक ही है।

एक दिन मेरे पति आउट ऑफ टाउन थे और एक गाड़ी जो स्टील लेकर आई थी, वो अनलोड हो रही थी.
तो हम में से किसी को वहां जाना था।
मेरे पति ने मुझे गोडाउन जाने को कहा।

शाम के छह बज रहे थे।
मैं अपनी स्कूटी लेकर गोडाउन पहुंच गई।

मैंने काले रंग की साड़ी पहनी थी।
गोरे चिट्टे बदन पर उस काली साड़ी में मैं एकदम पटाखा लग रही थी।

मैंने गहरे गले का ब्लाउज पहना था, जो स्लीवलेस था।
साड़ी मैंने नाभि के नीचे बांध रखी थी जिससे मेरी नाभि बिल्कुल नंगी थी।

जाते जाते ही मेरे दिमाग में आया कि यदि वहां चुदाई का जुगाड़ हुआ तो देखती हूँ।

चूत चुदवाने का मौका मिले तो मैं तो सड़क पर भी नंगी लेट जाऊं ऐसी रण्डी हूं ये तो आप सब जानते हैं ही।
वो तो कितना बड़ा गोडाउन था।

जल्द ही मैं वहां पहुंच गई।

मैंने देखा कि वहां एक बड़ा सा ट्रक खड़ा था जिस पर परविंदर नाम का हमारा ड्राइवर था।
और चार मजदूर स्टील खाली कर रहे थे।

परविंदर को मैं जानती थी मगर ज्यादा नहीं।

मेरे जाते ही वह मेरे पास आया और बोला- अरे मालकिन आप! मैंने मालिक को बोला था मैं हूं इधर … आपको आने कोई जरूरत नहीं है।
तो मैंने कहा- क्यों मैं ऐसे ही नहीं आ सकती।
उसने कहा- अरे ऐसा नहीं। आप तो मालकिन है कभी भी आयें। मगर आपको तकलीफ ना हो इसलिए मैं बोला।
मैंने कहा- घर बैठे बैठे बोर हो रही थी, इसलिए आ गई।

तो उसने मुझे कुर्सी दी और बैठने को कहा।
मैं बैठ गई।

वह उन मजदूरों से माल उतरवाने में लग गया।
मैं दूर से सब देख रही थी।

परविंदर एक बांका जवान आदमी था।
लगभग पैंतीस के करीब उम्र, हट्टा कट्टा, पंजाबी सरदार!
सर पर पगड़ी, करारी मूंछें, लंबी दाढ़ी, चौड़ा सीना, एकदम पहलवान था।
उसने सफेद रंग का कुर्ता पजामा पहन रखा था।

मुझे बिठाकर उसने मुझे पानी दिया और चाय लेकर आया।

मैंने उसे बैठने को कहा.
वह मेरे पास एक बक्से पे बैठकर चाय पीने लगा।

उसके पास बैठने से मुझे उसके बदन से एक अलग ही खुशबू आ रही थी।
वो उसके शरीर के पसीने की गंध थी जो मुझे बहुत ही अजीब सी लगी।
और मेरे अंदर की औरत को जागने लगी।

हम बैठे बैठे बातें करने लगे।
मैंने उसे उसके परिवार के बारे में पूछा।
तो उसने बताया कि उसकी फैमिली पंजाब में है और वह वहां साल में दो-तीन बार ही जाता है।

तब मैंने उसे चिढ़ाते हुए कहा- अरे तो तुम्हारी बीवी कैसे रह लेती है, तुम्हारे बिना? मुझे तो इनके बिना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।
उसने कहा- अब आदत हो चुकी है, उसे भी और मुझे भी!

तो मैं बोली- मगर कुछ जरूरतें तो केवल पति या पत्नी से ही पूरी हो सकती है ना!
उसने अलग ही अंदाज में कहा- मालकिन, वो तो कहीं भी पूरी हो जाती हैं।
और अपने पजामे पर हाथ फेरा।

मैं जानती थी कि यह सरदार आसानी से अपना लन्ड मेरी फुद्दी में डाल सकता है क्योंकि ड्राइवर लोग होते ही चोदू किस्म के!
और ये था भी छिछोरा।

मैं चाय का कप रखने नीचे झुकी तो जानबूझ कर मैंने अपना पल्लू गिराया।

तो मेरे गहरे गले के ब्लाउज से मेरी आधी चूचियां बाहर निकल गई।

उन्हें देखते ही जैसे परविंदर के मुंह में तो पानी आ गया।
वह देखता ही रहा।

मैंने भी उसे पूरा नजारा दिखा दिया।

फिर मैंने अपना पल्लू ठीक किया तो उसने नजर हटा दी।
तभी मैंने सोच लिया कि आज तो इस सरदार का लन्ड चखना ही है।

मैंने सुना था कि इनका लन्ड बहुत ही तगड़ा होता है।
तो मैं उसे रिझाने में लग गई।

मैं उससे बातें करती रही और वह भी मुझसे खुलने लगा।

कुछ देर में वह उठ गया और मुझे बाथरूम का इशारा करते हुए साइड में गया।

गोडाउन में बाथरूम नहीं था, तो एक दरवाजे से बाहर जाकर वो मूतने को खड़ा हुआ।

मुझे अंधेरे में धुंधला सा दिख रहा था.
वह अपने पजामे का नाड़ा खोल कर मूतने लगा।

अब वह वापिस आया तो मैंने कहा- सरदार जी, मुझे भी जाना है।
तो परविंदर बोला- आइए मालकिन, मैं आपको रास्ता दिखा दूं!

अब वो आगे और उसके पीछे पीछे मैं भी जाने लगी।
उसने मुझे उसी दरवाजे से बाहर जाने को बोला और कहा- मालकिन, आप यहां आराम से कीजिए।

मैं बाहर गई और नीचे बैठ गई।
मुझे पता था कि वह मुझे देख रहा है।
मैं भी जान बूझ के बिल्कुल उसे पूरा नजारा दिखाई दे, ऐसे साड़ी ऊपर कर दी और पैंटी नीचे सरका कर मूतने बैठ गई।

मैंने देखा कि चांद की रोशनी में वह मेरी नंगी मखमली गांड देख रहा है और अपना लन्ड हाथ से मसलने लगा है।

हम दोनों की नजरें एक दूजे से मिली तो मैंने शरारती हंसी छोड़ दी।
उसने इसी को मेरी इजाजत समझ ली।

खड़े होते हुए मैंने और भी इतरा कर अपनी गांड उसे दिखा दी।
अब पैंटी पहन कर मैं वापिस आने लगी.
इतने में वह मेरे नजदीक आने लगा।

मेरा निशाना सही लगा था।
सेक्सी मालकिन की चुदाई की आस में मेरे पास आकर वह खड़ा हो गया और कहने लगा- मालकिन, बला की खूबसूरती दी है आपको रबजी ने!

तो मैंने कहा- क्या सरदारजी सिर्फ देखोगे ही या कुछ करोगे भी?
जवाब में उसने कहा- अब आपकी इजाजत है तो बहुत कुछ कर देंगे।

इतना कहकर उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपनी बांहों में खींचा।
मैं भी बेशर्म औरत चांद की रोशनी में एक अनजान सरदार की बांहों में समा गई।

हम दोनों अब एक दूसरे से लिपट गए।

अब वह मेरी गांड पर हाथ रख के मेरे चूतड़ सहलाने लगा।
मैं उसके बदन से आती पसीने की गंध को सूंघने लगी।

उसने अपनी मर्दाना पकड़ में मुझे कैद कर लिया और मुझे कोने में ले जाकर अपना दाढ़ी वाला मुंह मेरे होंठों के पास ले आया।

मैंने भी अपने हाथों से उसकी गर्दन पकड़ कर अपने होंठ उसके होठों से चिपका दिए।
मैं उसकी दाढ़ी में हाथ डालकर उसे और भी गर्म करने लगी।

उसके मुंह में से दारु की दुर्गंध आने लगी मगर मुझे वो बहुत ही मदहोश करने लगी।

अब मैंने अपनी जीभ परविंदर के मुंह में भर दी।
हम दोनों एक दूसरे के जीभ से खेलने लगे।

बीच बीच में उसकी बड़ी बड़ी मूंछें मुझे चुभती जो मुझे बहुत मजा दिला रही थी।

हम दोनों कामवासना में खो चुके थे।

उसके हाथ अब मेरे चूचों पर आ गए और वह मेरे बड़े बड़े स्तनों को मसलने लगा।
मेरे शरीर में एक सनसनी फ़ैल गई।

हम दोनों एक दूसरे के मुंह में खो चुके थे।

स्तनों को दबाते हुए अब उसने एक हाथ मेरी साड़ी के अंदर डाल दिया जो पेटिकोट से होता हुआ सीधा पैंटी तक जा पहुंचा।

मैंने अपने पेट को भींच लिया और उसने अपना हाथ पैंटी में डालकर मेरी पानी से बहती हुई चूत पर लगाया।

गीली चूत देखकर वो मुस्कुरा कर बोल पड़ा- मालकिन, आपकी धन्नो तो एकदम तैयार है लन्ड खाने को!
मैंने कहा- सरदार जी, आप जैसा मुस्टंडा देखा है ना … तो नीयत खराब हो गई इसकी भी!

उसने कहा- और आपकी नीयत?
मैंने कहा- अरे वो तो आपको मूतते देखकर ही डोल गई।

“तो इसका इलाज करना पड़ेगा।” परविंदर अब मेरी चूत में उंगली करने लगा।

मैंने भी आगे बढ़कर उसके पजामे का नाड़ा खोल दिया और चड्डी के ऊपर से ही लन्ड को छुआ।

उसके बैठे हुए लौड़े का बड़ा आकार देखकर मैं दंग रह गई।

उसने मेरी चूत में से हाथ निकालकर अब मेरे मुंह में डाल दिया।

मेरी चूत का काम रस मुझे ही चुसवाने लगा।
इससे मैं तो अपना आपा खो गई।

मैंने उसकी उंगलियां चाट कर साफ कर दी।
अब मैं नीचे बैठ गई और उसके चड्डी पर मुंह लगाकर उसकी खुशबू सूंघने लगी।

मैं बिल्कुल पागलों की तरह हवस मिटाने को बेकरार हो रही थी।
मैंने चड्डी के ऊपर से ही उसके लन्ड को दांतों से काट दिया तो वो एकदम सेहम गया।

परविंदर मेरे सर को पकड़ कर अपने चड्डी में दबाने लगा।
मैंने हाथ बढ़ा कर उसकी चड्डी नीचे सरका दी और अब चांदनी रात में एक सरदार का विशाल लन्ड मेरे सामने था।

पहले तो मैंने उस भीमकाय लन्ड को अपनी जीभ निकाल कर चाटना चालू किया, उसके टोपे से लेकर उसकी गोटियों तक मैंने अपनी जीभ को फेर दिया।
उसने अपनी झांटें काफी दिन से साफ़ नहीं की थी।
मैंने उसके झांट के बालों को भी चाट लिया।

परविंदर सिर्फ आहें भरने लगा- अरे मालकिन, आप तो मुझे जन्नत की सैर करा रही हो! हाय ओ रब्बा!
कहते हुए वह मेरी जुल्फें सहलाने लगा।

जल्द ही मैंने उसका लन्ड हाथ में लेकर उसका सुपारा मुंह में भर लिया।
क्या मस्त गंध थी दोस्तो!

मैंने अब धीरे धीरे उसका लन्ड मुंह में ले लिया और कुल्फी की तरह उसे चूसने में लग गई।
सरदार तो जैसे स्वर्ग में पहुंच गया।

मैं अपनी थूक लगा लगा कर लन्ड मुंह में लेने लगी, लौड़े को गीला करके मैं उठ गई और साइड में जाकर मैंने अपनी साड़ी ऊपर उठा दी और झुककर घोड़ी बन गई।

एक लोहे के रॉड को पकड़ कर मैं खड़ी हो गयी और हंसते हुए उसे आंख मारकर मुझपर चढ़ने का इशारा किया।

अब सरदार ने पीछे से आकर मेरी गांड पर एक चमाट लगाकर मेरी पैंटी एक झटके में खींच के उतार दी।
सरदार मेरी मखमली गांड देख कर पागल हो गया- मालकिन मैं धन्य हो गया! आपने तो आज की रात बना दी मेरी!
मैंने कहा- अरे सरदारजी, अब मुझे भी अपने लौड़े की सैर कराओ। अकेले ही मजा लोगे क्या?

परविंदर ने भी ज्यादा देर ना करते हुए मेरी चूत पर थूक लगाया और अपना लन्ड मेरी चूत पर सेट कर के धीरे से उसका टोपा मेरी फुद्दी में डाल दिया।

मैंने अपनी आंखें बन्द कर दी और धीरे से कराह उठी।
फिर उसने एक जोर का शॉट लगा दिया और लगभग आधा लौड़ा मेरी चूत में घुसा दिया।
मुझे दर्द हुआ मगर मैं उसे सह गई।

एक पल रुकने के बाद उसने एक और ताकतवर धक्का लगाया और उसका पूरा लंड मेरी मुनिया में समा गया।
मेरी चीख निकल गई।

अब सरदार ने मेरे ब्लाउज में हाथ डाल कर मेरे चूचे दबाने शुरु किया।
साथ ही अब वह अपने लन्ड को अंदर बाहर करने लगा।

मैं चांद की रोशनी में एक सरदार के आगे घोड़ी बनी अपनी फुद्दी मरवा रही थी।
परविंदर ने अब अपनी स्पीड बढ़ा दी और उसके हर प्रहार पर मेरी चीख निकलती और मेरे चूतड़ों पर थप थप आवाज आती।

मैं अब वासना से भरी बरगलाने लगी- अअह्ह्ह … सरदार … चोद जोर से … और जोर से … बहुत दिनों बाद ऐसा तगड़ा लन्ड मिला है। मेरा पानी निकाल दे मेरे यार!
वह भी एकदम टॉप गियर में मेरी फाड़ने लगा- ले मेरी मालकिन, तेरा जितना शुक्रिया अदा करूं उतना कम होगा। ऐसी मखमली चूत आज मुझे मिल गई है। मालकिन ये ले!
बोलते हुए वह एकदम जोरदार धक्के लगाने लगा।

ऐसी अवस्था में मैं ज्यादा देर तक टिक नहीं सकी और मेरी चूत में तो जैसे बाढ़ आ गई।

मैं झड़ने लग गई। मेरी चूत एकदम फव्वारे उड़ाने लगी।
बहुत दिनों बाद आज मैं जी भर कर झड़ रही थी।

फिर भी परविंदर मुझे उसी स्पीड से ठोके जा रहा था।

झड़ने के बाद मैं एकदम ठंडी पड़ गई, मेरा बदन अकड़ गया।

अब मुझे उसकी ठोकरों का अहसास होने लगा।
मैंने उसे रोका और नीचे झुक कर बैठ गई।

मैं कुतिया बन गई और उसे फिर सवार होने का न्योता दिया।
अब उसने घुटनों के बल आकर मेरी चूत में अपना फौलादी लौड़ा घुसा दिया और रफ्तार पकड़ कर मुझे चोदने लगा।

उसने मेरे बाल पकड़े और जितना हो सके उतना मेरी चूत में अंदर तक घुसता गया।
“अरे सरदार जी, अब क्या हमारी चूत का भुर्ता बनाओगे क्या?” मैंने कहा।
उसने जवाब दिया- अरे मालकिन, आप तो बहुत बड़ी चूत की खिलाड़िन है। वरना मेरा तो घंटे तक नहीं होता। सड़क की रंडियां भी मेरे आगे हार मान लेती हैं।

दो चार झटकों के बाद उसने मुझे कहा- मालकिन, मेरा निकलने वाला है। कहां निकालूं?

मैंने हाथ से उसका लन्ड बाहर निकाला और मुड़ गई।
वह समझ गया और उठ खड़ा हुआ।

अब मैंने मेरी चूत के रस से सराबोर उसका लौड़ा अपने मुंह में ले लिया और उसकी गोटियों को सहलाते हुए चूसने लगी।

जल्द ही वह एकदम अकड़ते हुए मेरे मुंह में अपना रस छोड़ने लगा।
मैं उसके वीर्य को गटकती गई।

लगातार पिचकारियों से मेरा मुंह उसने भर दिया।

मैं जितना गटक सकती उतना निगल गई और बाकी वीर्य मेरे मुंह से बाहर मेरे गले तक बहने लगा।

उसके वीर्य की एक एक बूंद मैं पी गई।
बाद में मैंने चाट चाट कर उसका लन्ड साफ कर दिया।

उसने पूछा- मालकिन, कैसा लगा हमारा रस?
मैंने बोला- अरे सरदार जी, अमृत है ये तो! मजा आ गया।

अब मैं उठ गई, उससे लिपट गई और जबरदस्त स्मूच करने लगी।

सेक्सी मालकिन की चुदाई की कहानी अभी अगले भाग में और मजा देगी.
आप मुझे कमेंट्स और मेल में अपनी राय मुझे बताएं.
sharma_anjali85@yahoo.com

सेक्सी मालकिन की चुदाई कहानी का अगला भाग: सरदार जी को खिलाया चूत का मेवा- 2

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